नमस्कार मेरे प्यारे दोस्तों आप सभी के लिए आज बहुत सुंदर और रोचक कहानी लाया हु Hanuman Ji Ki Kahani | Hinduism जब हनुमान जी से हारे शानी देव जी
Hanuman Ji Ki Kahani In Hindi | Hinduism | Kahani In Hindi | हनुमान जी की बचपन की कहानी
शनि के नाम से ही हर व्यक्ति बहुत डरने लगता है। शनि
के दशा एक बार शुरू हो जाए तो साढ़ेसात साल
बाद ही पीछा छोड़ती है। लेकिन हनुमान जी भक्तों को
शनि जी से डरने की तनिक भी जरूरत नहीं। शनि जी ने
हनुमान जी को भी डराना चाहा लेकिन मुंह की खानी
पड़ी आइए जानें कैसे माजेदार कहानी ...
महान बाल साली पराक्रमी हनुमान अमर हैं। पवन जी के पुत्र
हनुमान जी रघुकुल के कुमारों के कहने से प्रतिदिन
अपनी आत्मकथा का कोई भाग सुनाया करते थे।
उन्होंने कहा कि मैं एक बार संध्या समय अपने
आराध्य श्री राम जी का स्मरण करने लगा तो उसी
समय ग्रहों में पाप ग्रह, मंद गति सूर्य पुत्र शनि देव
पधारे। वह अत्यंत कृष्ण वर्ण के भीषणाकार थे।
वह अपना सिर प्रायः झुकाये रखते हैं। जिस पर
अपनी दृष्टि डालते हैं वह अवश्य नष्ट हो जाता
है। शनिदेव हनुमान के बाहुबल और पराक्रम को
नहीं जानते थे। हनुमान ने उन्हें लंका में दशग्रीव
के बंधन से मुक्त किया था। वह हनुमान जी से
विनयपूर्वक किंतु कर्कश स्वर में बोले हनुमान
जी ! मैं आपको सावधान करने आया हूं। त्रेता
की बात दूसरी थी, अब कलियुग प्रारंभ हो गया
है। भगवान वासुदेव ने जिस क्षण अपनी अवतार
लीला का समापन किया उसी क्षण से पृथ्वी पर
कलि का प्रभुत्व हो गया। यह कलियुग है। इस
युग में आपका शरीर दुर्बल और मेरा बहुत बलिष्ठ
हो गया है।
अब आप पर मेरी साढेसाती की दशा प्रभावी हो
गई है। मैं आपके शरीर पर आ रहा हूं। शनिदेव को
इस बात का तनिक भी ज्ञान नहीं था कि रघुनाथ
के चरणाश्रतों पर काल का प्रभाव नहीं होता।
करुणा निधान जिनके हृदय में एक क्षण को भी
आ जाते हैं, काल की कला वहां सर्वथा निष्प्रभावी
हो जाती है। प्रारब्ध के विधान वहां प्रभुत्वहीन
हो जाते हैं। सर्व समर्थ पर ब्रह्म के सेवकों का
नियंत्रण-संचालन-पोषण प्रभु ही करते हैं। उनके
सेवकों की ओर दृष्टि उठाने का साहस कोई
सुर-असुर करे तो स्वयं अनिष्ट भाजन होता है।
शनिदेव के अग्रज यमराज भी प्रभु के भक्त की
ओर देखने का साहस नहीं कर पाते।
हनुमान जी ने शनिदेव को समझाने का प्रयत्न
किया, आप कहीं अन्यत्र जाएं। ग्रहों का प्रभाव
पृथ्वी के मरणशील प्राणियों पर ही पड़ता है। मुझे
अपने आराध्य का स्मरण करने दें। मेरे शरीर में
श्री रघुनाथजी के अतिरिक्त दूसरे किसी को स्थान
नहीं मिल सकता।
लेकिन शनिदेव को इससे संतोष नहीं मिला। वह
बोले, मैं सृष्टिकर्ता के विधान से विवश हूं। आप
पृथ्वी पर रहते हैं। अतः आप मेरे प्रभुत्व क्षेत्र से
बाहर नहीं हैं। पूरे साढे बाईस वर्ष व्यतीत होने पर
साढ़े सात वर्ष के अंतर से ढाई वर्ष के लिए मेरा
प्रभाव प्राणी पर पड़ता है। किंतु यह गौण प्रभाव
है। आप पर मेरी साढ़े साती आज इसी समय से
प्रभावी हो रही हो। मैं आपके शरीर पर आ रहा
हूं। इसे आप टाल नहीं सकते।
फिर हनुमान जी कहते हैं, जब आपको आना ही
है तो आइए, अच्छा होता कि आप मुझ वृद्ध को
छोड़ ही देते' फिर शनिदेव कहते हैं, कलियुग में
पृथ्वी पर देवता या उपदेवता किसी को नहीं रहना
चाहिए। सबको अपना आवास सूक्ष्म लोकों में
रखना चाहिए जो पृथ्वी पर रहेगा। वह कलियुग के
प्रभाव में रहेगा और उसे मेरी पीड़ा भोगनी पड़ेगी
और ग्रहों में मुझे अपने अग्रज यम का कार्य मिला
है। मैं मुख्य मारक ग्रह हूं। और मृत्यु के सबसे
निकट वृद्ध होते हैं। अतः मैं वृद्धों को कैसे छोड़
सकता हूं।'
हनुमान जी पूछते हैं, आप मेरे शरीर पर कहां
बैठने आ रहे हैं। शनिदेव गर्व से कहते हैं प्राणी
के सिर पर। मैं ढाई वर्ष प्राणी के सिर पर रहकर
उसकी बुद्धि विचलित बनाए रखता हूं। मध्य के
ढाई वर्ष उसके उदर में स्थित रहकर उसके शरीर
को अस्वस्थ बनाता हूं व अंतिम ढाई वर्ष पैरों में
रहकर उसे भटकाता हूं।'
फिर शनिदेव हनुमान जी के मस्तक पर आ बैठे
तो हनुमान जी के सिर पर खाज हुई। इसे मिटाने
के लिए हनुमान जी ने बड़ा पर्वत उठाकर सिर पर
रख लिया।
शनिदेव चिल्लाते हैं, यह क्या कर रहे हैं आप।'
फिर हनुमान जी कहते हैं, जैसे आप सृष्टिकर्ता के
विधान से विवश हैं वैसे मैं भी अपने स्वभाव से
विवश हूं। मेरे मस्तक पर खाज मिटाने की यही
उपचार पद्धति है। और आप अपना कार्य करें और
मैं अपना कार्य ।'
ऐसा कहते ही हुनमान जी ने दूसरा पर्वत उठाकर
सिर पर रख लिया। इस पर शनिदेव कहते हैं,
आप इन्हें उतारिए, मैं संधि करने को तैयार हूं।"
उनके इतना कहते ही हनुमान जी ने तीसरा पर्वत
उठाकर सिर पर रख लिया तो शनि देव चिल्ला
कर कहते हैं, मैं अब आपके समीप नहीं आऊंगा।
फिर भी हनुमान जी नहीं माने और चौथा पर्वत
उठाकर सिर पर रख लिया। शनिदेव फिर
चिल्लाते हैं, पवनकुमार ! त्राहि माम ताहि माम !
रामदूत ! आंजनेयाय नमः ! मैं उसको भी पीड़ित
नहीं करूंगा जो आपका स्मरण करेगा। मुझे उतर
जाने का अवसर दें।
हनुमान जी कहते हैं, बहुत शीघ्रता की। अभी
तो पांचवां पर्वत (शिखर) बाकी है। और इतने में
ही शनि मेरे पैरों में गिर गए, और कहा' मैं सदैव
आपको दिये वचनों को स्मरण रखूंगा।'
आघात के उपचार के लिए शनिदेव तेल मांगने
लगे। हनुमान जी तेल कहां देने वाले थे। वही
शनिदेव आज भी तेलदान से तुष्ट होते हैं ।
People Ask Question
हनुमान जी
का
इतिहास
क्या
है?
वह भगवान
शिवजी के सभी अवतारों में सबसे बलवान और बुद्धिमान माने जाते हैं। रामायण के
अनुसार वे श्रीराम के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का
वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमान जी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिये
हुआ।
हनुमान जी
के
कितने
बच्चे
थे?
हनुमानजी
के पसीने की बूंद से उनके एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसे मकरध्वज कहा गया
हनुमान जी की उत्पत्ति कैसे हुई?
ऐसे हुआ हनुमान जी का जन्मभगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर
लिया। भगवान विष्णु का आकर्षक रूप देखकर शिवजी कामातुर हो गए और उन्होंने अपना
वीर्यपात कर दिया। पवनदेव ने यह वीर्य राजा केसरी की पत्नी अंजना के गर्भ में
प्रविष्ट कर दिया। इससे वह
गर्भवती हो गईं और हनुमानजी का जन्म हुआ
हनुमान जी
का
जन्म
कब
और
कैसे
हुआ?
बाल्मिकी रामायण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि मंगलवार के दिन स्वाती नक्षत्र में कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन हनुमानजी का प्राकट्य हुआ था। जबकि एक अन्य मान्यता के अनुसार चैत्र शुक्ल पूर्णिमा तिथि को बजरंगबली का जन्म हुआ
हनुमान जी
के
नीचे
कौन
है?
इस मंदिर
की खासियत यह है कि इसमें जो मूर्ति स्थापित है, उसमें शनिदेव हनुमानजी के पैर के नीचे स्त्री रूप में
बैठे दिखाई देते हैं।
पिछले जन्म में हनुमान कौन है?
हनुमान के जन्म में वायु की भूमिका से जुड़ी किंवदंतियों के कारण
हनुमान को देवता वायु (पवन देवता) का पुत्र भी कहा
जाता है और उन्हें भगवान शिव (विनाशक भगवान) का अवतार कहा जाता है।
कलयुग में हनुमान जी जिंदा है क्या?
वर्तमान
में जो युग चल रहा है उसे कलयुग नाम दिया गया है. ऐसी मान्यता है कि कलयुग में
देवी देवता वास नहीं करते हैं. लेकिन हनुमान जी (Hanuman ji) एक ऐसे देवता हैं जिन्हें कलयुग के देवता
के नाम से जाना जाता है.
हनुमान जी कितने फुट के थे?
शिमला
में भव्य हनुमानजी की प्रतिमा शिमला के पास जाखू हिल में स्थित 108 फुट के ऊंचे हनुमानजी
स्थित हैं।